26 जनवरी 2020
26 जनवरी 2020 के मौके पर मै मनोज यादव अपने ब्लॉग के माध्यम से अपने देशवासियों को हार्दिक शुभ कामनाएं देता हूं आज यानी 26 जनवरी 2020 को हमारा देश 71 वा गणतंत्र दिवस मना रहा है ।
आज हमारे संविधान को लागू हुए 71 साल पूरे हो गए इन 71 सालो में हम लोग प्रतेक साल अपने देश के प्रति संकल्पित होते है कि हम लोग हर हाल में अपने संविधान की रक्षा करेंगे देश के स्कूलों अथवा सरकारी प्रतिष्ठानों में झंडारोहण के कार्यक्रम में हमारा तिरंगा ऐसे लहराता है मानो उसमे हमारे शहीदों की साशो की सन सनाहट टकराती हो ,हमारा तिरंगा उन शहीदों की याद ही नहीं दिलाता है बल्कि चीख चीख कर हमसे कहता है कि।
“ऐ मेरे वतन के लोगो जरा आंख में भरलो पानी
जो शहीद हुए है उनकी जरा याद करो कुर्बानी
जब देश में थी दीवाली वो खेल रहे थे होली जब
जब हम बैठे थे घरों में वो झेल रहे थे गोली”
जब देश में थी दीवाली वो खेल रहे थे होली जब
जब हम बैठे थे घरों में वो झेल रहे थे गोली”
26 जनवरी 2020 को लता जी की मधुर वाणी
26 जनवरी 2020 के दिन भारतीय कोकिला लता जी की ये पंक्तियां हमारे कानों में गूंजती है तो हमारे शरीर के अंदर एक अजीब सी सिहरन पैदा होती है और उन शहीदों कि काल्पनिक छवियां हमारे जेहन में कौधने लगती है कि ।
आज हम लोग जो भी है उन वीर बलिदानियों की वजह से है जिनके वजह से हमारा सिना चोड़ा हो जाता है और इतना ही चौड़ा नहीं होता है कभी कभी तो 56 इंच भी पार कर जाता है ।
संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर के सपने
आज जिस बाबा साहेब अंबेडकर की कलम से लिखे गए संविधान को शंसोधित करके नए नए कानून लाए जा रहे ,जिस संविधान ने हमें ये ताकत दी उसी संविधान की हम धज्जियां उड़ा रहे आज हमारा संविधान बिलख बिलख कर हमसे पूछ रहा है ।
” मेरे दोस्त मेरे भाई मेरे हम रईई”
मै कौन सी ऐसी गलती कि सजा पाई”
जिस बाबा साहेब अंबेडकर ने भारतीयों को लोक तंत्र का ग्रंथ सौपा उस पूजनीय महान आत्मा को तथा उनके द्वारा दिए गए ग्रंथ की यही लोक तंत्र धज्जियां उड़ा रहा है ,आज सत्ता के लोभी देश के संविधान के साथ खेल रहे है ।
राजनीतिक विचार धारा political ideology
जिस भारतीय फ़ौज ने अपनी प्राणों की आहुति देकर मानवाधिकार अथवा संविधान की रक्छा करते है उसी फ़ौज पर लोग राजनीत करते है उनके सोर्य और पराक्रम पर प्रश्न चिन्ह लगाते है उनकी शहादत को उनकी ड्यूटी बताते है और उनके पराक्रम का श्रेय उठा कर सत्ता की चाभी घुमाते है 1965 हो 1971 हो ,या 1999 हो इन सभी लड़ाइयों में भारत ने अपने सुर विरो को खोया है गरीब परिवारों का चिराग बुझा है ,कभी सुना है कि इन सत्ता धारियों का कोई अपना शहीद हुआ है ।
और यही सत्ताधारी बोलते है कि शहीद होने के लिए ही लोग फ़ौज में जाते है उसी के लिए उन्हें तनख्वाह दिया जाता है बाह रे लोक तंत्र और वह रें लोक तांत्रिक लोग।
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