मालिक अपने मन का Master of your mind

मालिक अपने मन का Master of your mind

जिस व्यक्ति के मन में जैसी सोच होगी उसी के अनुरूप वो कार्य भी करता है आप सोचोगे की मै अमीर हूं तो आप अमीर है आप सोचोगे की मै गरीब हूं तो आप गरीब है क्यों की इंसान कि मानसिक सोच उसके अवचेतन मन की ताकत होती है जिससे उसकी prasnaliti का विकाश होता है।
     
         एक समय की बात है दो मित्र एक ही स्कूल में पढ़ते थे दोनों में काफी घानिस्त्ता थी दोनों पढ़ाई में बहुत तेज थे एक का नाम राघव था दूसरे का नाम यादवेन्द्र था यादवेन्द्र के घर में वो अपनी मा का इकलौता पुत्र था पिता बचपन में ही गुजर गए थे इसलिए वो अपने घर का इकलौता मालिक भी था उसके जेहन में नेतृत्व का गुड़ कूट कूट कर भरा था तो  वहीं दूसरी तरफ राघव का परिवार भरा पूरा परिवार था
   

मालिक अपने मन का Master of your mind

        दोनों मित्र स्कूल की परिछा में टाप नम्बर से पास भी हुवे और दोनों एक साथ सहर नौकरी करने चले गए संयोग बस दोनों की नौकरी एक ही कंपनी में लगी दोनों एक साथ कंपनी आते जाते थे दोनों एक  ही रूम पार्टनर भी बन गए  जिस रूम में रहते थे उस रूम की साफ सफाई यादवेन्द्र खुद करता था,यह देख राघव उसपर गुस्सा हो जाता था और बोलता था “अरे भाई जब हम लोगो से मकान मालिक सफाई का भी पैसा किराए में जोड़ कर लेता है तो तुम सफाई क्यों करते हो “
           “नहीं राघव ऐसा नहीं बोलते, इस रूम में हम लोग रहते है और  अभी इसका मालिक भी हम लोग है इसलिए इसके भले बुरे का खयाल भी हमे ही रखना होगा” यादवेन्द्र ने समझाते हुए बोला ।
       
          “ठीक है भाई ये सब तू ही कर हमसे तो नहीं होने वाला”

           फिर धीरे धीरे समय गुजरने लगा और कुछ ही सालों  बाद कंपनी में हड़ताल हो गया  राघव यूनियन के साथ खड़ा हो गया परन्तु यादवेन्द्र हमेशा उसका विरोध करता था,कम्पनी के मजदूर हरताल ख़तम करने का नाम ही नहीं ले रहे थे इस तरह इक दिन कंपनी मालिक तंग आकर कंपनी को ही बन्द कर दिया और पूरे कर्म चारी रोड पर आ गए

         फिर एक दिन दोनों मित्रो को वो सहर छोड़ना पड़ा जब दोनों लोग ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन के तरफ जा रहे थे तो अचानक यादवेन्द्र को याद आया कि कमरे का लाइट तो जलता हुआ छूट गया है तो ये बात वो राघव को बताया, इस पर राघव ने हस्ते हुए बोला ” अरे भोलू अभी घर जा रहे हो और तुम्हे कमरे कि चिंता पड़ी है मकान मालिक किसलिए है, वो बत्ती बंद कर देगा तुम काहे को चिंता करते हो”

        ” नहीं राघव ये गलत है लाइट तो हम लोग जलता हुआ छोड़ कर आए है इस लिए हमे ही बंद करना चाहिए ,चलो बंद करके आते है”
   
           “नहीं भाई मै तो नहीं जाने वाला तुम्हे जाना है तो जाओ बंद करके आओ मै यही तुम्हारा इंतजार करूंगा ठीक है “

         “ठीक है तू यहीं रुक मै बंद  करके आता हूं”इतना कह कर यादवेन्द्र चला गया
           दोनों मित्रो में दोस्ती  तो खूब गहरी थी परन्तु कुछ बातो को लेकर मतभेद जरुर था यादवेन्द्र कमरे का बत्ती बंद करके आ गया ,और वो लोग साम की गाड़ी पकड़ कर घर चले गए

                कुछ दिनों बाद यादवेन्द्र को पता चला कि राघव की दूसरी नौकरी लग रही है उसके पिता जी के पैरवी करने पर क्यों की उसके पिता जी के पहचान वाले ज्यादा लोग थे।

मालिक अपने मन का Master of your mind

                इधर यादवेन्द्र का तो कोई पैरोकार नहीं था इसलिए यादवेन्द्र ने सहर से जो कुछ पैसा बचा कर लाया था उन पैसों से एक छोटा सा बिजनेस स्टार्ट किया और राघव के मेहनत और लगन के बदौलत उसका बिजनेस कुछ ही शालो में धीरे धीरे ग्रो करने लगा
       
           यादवेन्द्र की सूझ बुझ से उसका छोटा सा बिजनेस धीरे धीरे कंपनी का रूप लेने लगा यह सब देख यादवेन्द्र उसका एक यूनिट सहर में जाकर खोल दिया वहा पर काफी कर्मचारियों कि जरूरत थी इस लिए पेपर टीवी के माध्यम से एस्तिहार छपवा  दिया  ।

         यादवेन्द्र की गरीबी उसको छोड़ कर कोसो दूर चली गई थी उसका रहन सहन एक बिजनेस मैन की तरह था  एक दिन जब वह अपने आफिस में बैठकर कुछ कर्मचारियों का इंटरवयू ले रहा था तो उसके टेबल पर उसके हाथो में एक ऐसा डाक्यूमेंट्स लगा कि वो देखकर उसके आंखो से आंसू बहने लगे  और तुरंत चपरासी को बुला कर उस सख्स को अन्दर बुलाने के लिए बोला ।
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           अन्दर आने के बाद वो सख्स यादवेन्द्र को सिर्फ निहारे जा रहा था उसकी आंखे कुछ कहना चाहती थी पर नहीं कह पा रही थी “कहो मित्र कैसे हो मिठाई नहीं खिलाओगे तुम्हारी नौकरी पक्की हो चुकी है तुम जो चाहो पोस्ट ले सकते हो ” यादवेन्द्र ने भावुक लहजे में बोला और गले लगा लिया,वो सख्स कोई और नहीं बल्कि उसका मित्र राघव था ऐसी स्थिति में मिलने के बाद दोनों के आंखो से आंसू सूखने का नाम नहीं ले रहे थे ।

          फिर  धीरे धीरे कुछ दिन बीता और राघव और यादवेन्द्र एक साथ घूमने के लिए बाहर निकले तो पार्क में राघव ने यादवेन्द्र से पूछा ” मित्र हमे एक बात समझ में नहीं आती कि हम दोनों आदमी पढ़ाई भी एक ही साथ किए ,पास भी एक साथ हुवे नौकरी भी एक साथ की ,काम भी एक ही साथ छूटा और आज तुम एक कम्पनी के मालिक हो और मै एक कर्मचारी ही रह गया ऐसा क्यों” राघव ने आश्चर्य भरे नजरो से देखते हुवे पूछा

          “मित्र ये सब सोच का नतीजा है  और समय का महत्तव , मै इस बात को छेड़ना नहीं चाहता था परन्तु तुम छेड़ ही दिए हो तो सुनो जब हम लोग साथ साथ रहते थे तो भी मै मालिक था अपनी कम्पनी का,अपने कमरे का ,अपने संसाधनों का इसलिए मै मालिक अपने मन का था, और तुम कल भी एक कर्मचारी थे अपनी कम्पनी का ,अपने कमरे का,अपने संसाधनों का तुम्हारे अंदर कल भी कर्मचारी वाली सोच थी और आज भी वही सोच है, इसलिए तुम कल भी क्रमचरी की तरह काम करते थे और आज भी कर्मचारी की तरह काम कर रहे हो बस सोच का नतीजा है मित्र

 

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